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लेखनी प्रतियोगिता -10-Aug-2023 वह डरावनी रात


                         शीर्षक:- वह डरावनी रात




        "रागिनी उस रात क्या हुआ  था ?" सरिता ने पूछा।

     "सरिता उस मनहूस रात को में कभी नहीं भूल सकती हूँ। उस रात को मेरी आँखौ के सामने ही  मेरा सब कुछ  लुट रहा था और में अपाहिज  की तरह अपना सर्वस्व  लुटता हुआ  देख रही थी।  मैं उन लुटेरौ से कुछ  भी कह नहीं पा रही थी।"  इतना कहकर  रागिनी की आँखों के सामने आज से दस बारह साल पहले की रात का दृश्य  नजर आने लगा।

          वह  भयानक  सर्दी की रात थी। अमीर लोग तो शाम के पांच बजते ही अपनी अपनी रजाईयौ व कम्बल में घुस गये थे। परन्तु गरीब के पास तो सर्दी से बचने का रास्ता आग सेकना ही था।  वह आग सेक कर ही सर्दी को भगाने की कोशिश  करता था।

           उत्तर प्रदेश  के एक जिले में छोटा सा गाँव था उस गाँव के पास ही  कुछ खाना बदोस रहते थे। उनमें ही एक रामलाल  का परिवार  रहता था। रामलाल के दो बेटे थे बड़ा रमेश व छोटा महेश। दोंनो बेटे फेरी लगाकर  कपड़ा  बेचकर अपना गुजारा करते थे। उस दिन रमेश कपड़ा  खरीदने शहर गया हुआ  था। छोटा महेश कुछ  समय पहले ही फेरी से लौटकर आया ही था।

        महेश अभी हाथ पैर धोकर अपनी पत्नी रागिनी से बोला," रागिनी खाना बनाया हो तो मुझे देदे। मुझे आज थकान  से नींदसी आरही है।"

        "हाँ खाना तैयार  है मैं अभी ला रही हूँ।" इतना कहकर  रागिनी खाना लगाने लगी। उसी समय बाहर गली में किसी जानवर की दोंड़ने की आवाजें  आने लगी। ऐसा महसूस  होरहा था जैसे घोड़े  दौड़ रहे हों।

         महेश ने रागिनी से यह पूछना चाह रहा था कि गली में कैसा शोर है तब तक राइफल लहराते हप तीन चार जवान अंदर आगये और महेश को पकडकर  पूछने लगे," तिजोरी की चाबी कहाँ है जल्दी से देख नहीं तो ट्रिगर दबाया तो क्या होगा तू अच्छी तरह समझता होगा।"

       "कैसी तिजोरी? हमारे घर  में तो कोई  तिजोरी नहीं है ?" महेश उनकी पकड़ से छूटने की कोशिश  करता हुआ  बोला।

        तब तक उसके साथी चारो तरफ चक्कर  काटकर  आकर बोले ," सरदार  यहाँ तो कोई  तिजोरी नहीं है। शायद  हम गलत जगह आगये हैं ?"

        "ओ घौचू ! राम प्रसाद  का घर कौनसा है? चल हमारे साथ  हमें बताकर  आ?" वह सरदार महेश से बोला।

       "कौन राम प्रसाद  ? मैं तो किसी राम प्रसाद  को नहीं जानता हूँ ?" महेश अनजान बनता हुआ  बोला।

     " तू राम प्रसाद  को नहीं जानता है ? अभी जान जायेगा ?" इतना कहकर  महेश के पिछवाड़े पर राइफल की बट से प्रहार किया।

      उस समय महेश के पिता भी किसी रिश्तेदारी में गये थे। रागिनी यह सब छिपकर  देख रही थी  वह चुपचाप देशी रिवाल्वर  ले आई और अवसर देख रही थी। पहले ये खानाबदोश  अपनी रक्षा हेतु  नाजायज  हथियार  रखते थे। उन हथियार को घर के सभी सदस्य चलाना जानते थे।
         महेश राम प्रसाद  के घर का पता बताना नहीं चाह रहा था। जबकि डाकू उसको मार मारकर उससे पता पूछने की कोशिश  कर रहे थे । जब वह महेश को गोली मारने लगे तब रागिनी ने  अपनी  रिवाल्वर  से निशाना लगाकर  एक डाकू को मार गिराया। इतने में महेश ने भी छूटकर  डाकुँऔ  के साथ  हाथापाई  शुरू करदी।

               तब तक पूरे गाँव में शोर होगया कि गाँव में डाकूँ आगये हैं। सब तरफ से गाँव में गोलियां चलने लगी। इससे डाकूँ डर गये और वह महेश को गोली मारकर  भाग गये।

         रागिनी ने दौड़कर  महेश को सम्भाला परन्तु  तब तक  बहुत देर  हो चुकी थी। डाकूँऔ ने  अपने साथी को अपने साथ लेजाने की बहुत कोशिश  की लेकिन  गाँव वालौ के डर से वह भाग गये। बाद में एक डाकूँ को मार गिराने के साहस के लिए  रागिनी को  सम्मानित  किया था।

            उस भयानक  रात की याद करके रागिनी आज भी भय से काँपने लगती है । रागिनी ने उसके बाद  गाँव छोड़ दिया था। वह शहर चली गयी थी वहाँ जाकर  वह  किराने की दुकान खोलकर अपना गुजारा कर रही थी।

      कुछ दिन पहले उनके मुहल्ले में सरिता का  परिवार  रहने आया था। जब उसको रागिनी के साध हुए  हादसे के विषय में मालूम हुआ  तब वह रागिनी से उस घटना के विषय में पूछ रही थी।

      नोट:-      यह कहानी सत्य  घटना पर आधारित  है। पात्र के नाम बदले हुए  हैं।

आज की दैनिक  प्रतियोगिता के लिए  रचना।
नरेश शर्मा" पचौरी"

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5 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 12:00 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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madhura

19-Aug-2023 07:08 AM

amazing

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KALPANA SINHA

11-Aug-2023 10:23 AM

Awesome story

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